बनी रहे बुज़ुर्गों के प्रति श्रध्दा और अनुराग;उनकी दुआओं से ही जागते हैं हमारे भाग.

बुधवार, 3 अगस्त 2011

नसीहतों का समंदर थे पापा…










पापा के साथ हर शाम अच्छी ही गुज़रती थी क्योंकि पापा के ऑफिस से आने के बाद का सारा समय हमारा होता था .पापा हम बच्चों के साथ बच्चे बन जाते,और खूब मस्ती करते ,कहीं -कहीं उनकी डायरी के पन्नों पर सिर्फ यही लिखा है ....

१२.४.७८.

प्रात:जागृति ४.३० बजे .

नित्य कर्म से निवृत्ति ,तत्पश्चात पूजन और

साराsssssssssss दिन 'घोटू बा' के संग शाम अतीव आनंद प्राप्ति .

रात्रि विश्रांति ये 'घोटू बा कभी बेटी के रूप में ,कभी बेटे के रूप में ,

कभी पोती के रूप में कभी पड़ोस के बच्चों तो कभी कभी जानवरों के बच्चों के रूप बनते जाते .

एक बार का किस्सा याद है उन दिनों इंदौर इतना फैला नहीं था एरोड्रुम रोड पर मोर ,बन्दर दिख जाते थे बारिश में घरों की छत पर आ जाया करते थे ,पापा सुबह का पेपर आँगन में ही पढ़ा करते थे ,एक दिन एक बन्दर और उसका बच्चा पापा के पास आ गए थोड़ी देर बाद बन्दर तो चला गया लेकिन बच्चा वहीँ था इधर उधर घूम के वो पापा की गोद में चढ़ आया पापा ने उसे आधे घंट तक बिठाया ,हम दोनों भाई बहन खिड़की से देख रहे थे गोलू (मेरा छोटा भाई )तो बाहर चला गया ..मैं थोड़ी डर रही थी....बिल्ली के बच्चे ,कबूतर के घोसलें कुछ भी हो उन्हें वेसे ही रहने देते उनके लिए दूध ,पानी का इंतजाम सब माँ की जिम्मेदारी .....हम कहते की पापा इन्हें घर में रख ले तो कहते -'इन्हें स्वतंत्र रहने दो ,प्यार दोगे तो ख़ुद ही तुम्हारे पास आ जायेंगे अतिथि की तरह सत्कार करों जब जाना चाहे जाने दो.

बचपन कि स्मृति में नन्हीं सी बच्ची स्लेट पर कुछ घोट रही है ....माँ खाना बना रही है ...पास ही पिताजी बैठे खाना खा रहे है...साथ ही दरवाज़े के पास बैठी नन्हीं सी बच्ची को लिखना सिखा रहे है....पढाई-लिखाई की पहली धुंधली सी यही याद है ज़हन में ....एक आम भारतीय आदमी के जैसे ही पापा भी थे. सुबह १०.०० से शाम ५.०० बजे तक ऑफिस और उसके बाद का सारा समय घर परिवार के लिए .ईश्वर में अटूट श्रद्धा और विश्वास प्रात: उठते ही भगवान की पूजा अर्चना सबसे पहला काम होता था.पूजा के ख़त्म होने तक उनके श्लोक ,मन्त्र,भजन,आदि का अनवरत उच्चारण बिना नागा होता ...वह गुनगुनाहट रोज कण में पड़ते -पड़ते कब कंठस्थ हो गई इसका एहसास बेटी को ये गुनगुनाहट सुनाई देने लगी , वो कहती कि ,माँ- तुम्हें इतना सब कैसे याद है?तब मन उन स्मृतियों में खो जाता ,जब पापा इसी तरह गुनगुनाते थे और मैं भी उनके साथ गुनगुनाने लगती थी.ऐसा नहीं लगता है कि कुछ आदतें अपने आप ही इसी तरह बनती जाती है.किसी भी वस्तु,चाहे वो कहना हो ,खाना हो,या फिर कोई सामान उसे खूबसूरती के साथ पेश करने का सलीक़ा पापा से ही आया है...छुटपन में यही सलीका दुश्मन था क्योंकि तब इसके लिए डांट जो पड़ती थी...इसको ऐसे रखो,,ये सामान जगह पर क्यों नहीं है,इसे ठीक से रखो,,ये टोकाटाकी कब ज़िन्दगी के सलीक़ा बन तब्दील हो गई पता ही नहीं चला .

हम दोनों भाई –बहमें मैं पापा की फेवरेट थी.स्वाभाविक है कि जो संतान अभिभावकों की इच्छाओं को,सपनों को ,पूरा करते लगते हैं उसके प्रति उनका लगाव थोड़ा सा ज़्यादा ही होता है.

इसकी वजह थी ..मैं भी पापा की तरह ही हर तरह की गतिविधियों में भाग लेती थी ,वे भी पूरे उत्साह से मुझे भाग लेने के लिए भेजते ,मेरी मदद हमेशा करते पर कभी भी स्टार्टिंग से नहीं ,वो कहते -पहले तुम लिखो/तैयार करो फिर मैं दुरुस्त करूँगा.आज इस ब्लॉग पर पापा की सामग्री को सजाते समय भी उन पलों की बेसाख़्ता याद आती है. कोशिश है कि अपने हम-उम्र और बाद की पीढ़ी के लिये ये काम करना ज़रूरी है. उम्मीद करती हूँ कि

ये दस्तावेज़ीकरण पापा से जुड़े आप सभी परिजनों / मित्रों को अच्छा लगेगा.

1 टिप्पणी:

  1. this is from nidhi to her papa from me..........

    IF ROSES GROW IN HEAVEN ,LORD,THEN PICK A BUNCH FOR ME. PLACE THEM IN MY DADS ARM N TELL HIM THEY'RE FROM ME. TELL HIM THAT I LOVE N MISS HIM N WHEN HE TURNS TO SMILE PLACE A KISS UPON HIS CHEEK N HOLD HIM FOR A WHILE...............

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