बनी रहे बुज़ुर्गों के प्रति श्रध्दा और अनुराग;उनकी दुआओं से ही जागते हैं हमारे भाग.
रविवार, 21 अगस्त 2011
पाप के विसर्जन का पावन पर्व पर्युषण
यह ब्लॉग पूज्य पिता श्री जयंतीलालजी जैन को श्रध्दांजलि के साथ उनके शब्द-संसार से आपको परिचित करवाना और उनके सुकार्यों का दस्तावेज़ीकरण करना है. पर्युषण महापर्व अनक़रीब है और इसी को ध्यान में रखते हुए आज जारी कर रही हूँ १ अगस्त २००९ को लिखा गया उनका एक लेख इसी पावन पर्व की भावभूमि पर. समय बदल जाता है,परिवेश और हमारा जीवन-चिंतन भी.नहीं बदलते तो हमारे वे शाश्वस्त सत्य जो भगवान महावीर की वाणी के रूप में हम संसारियों तक पहुँचते रहे हैं. एक सुश्रावक,चिंतक और लेखक के रूप में पिताजी की यह मीमांसा धर्म और अध्यात्म की भावभूमि को अत्यंत सरलता से अभिव्यक्त कर रही है.
क्षेत्र और काल की यह विशेषता है कि वैश्विक भौतिक समृद्धि की दौड़ में भारत देश आज भी योग और पर्व प्रधान है .इस देश की माटी के कण- कण में पर्वों के माध्यम से धर्म समाया हुआ है .सृष्टि विनाश के विध्वंसक उपकरण तैयार करने की अपेक्षा परस्पर प्रेम,दान दया सदाचार और अहिंसा की सीढ़ी से परमात्म भक्ति के मार्ग के सहारे मोक्ष तक पहुंचना भारतीय संस्कृति का प्रमुख धेय रहा है चिंतन की चांदनी यहाँ सर्वदा प्रवाहमान होती रहती है जिसमें पर्युषण महापर्व का विशेष महत्व है.
परी +उषण =पर्युषण परी अर्थात चारों और से ,तथा उषण यानि बसना ,स्थिर रहना .क्रोध ,मान और लोभ के दरवाज़े बंद करके अपनी आत्मा के पास रहने का नाम है पर्युषण ..प र और व् शब्द प से पाप ,र से रग -रग और व से विसर्जन ..जो पाप को रग रग से विसर्जित करा दे वही पर्व है स्व में रमण करते हुए आत्मा के वास्तविक रूप व लक्षण धर्मों को पहचानना ही पर्युषण है
- महापर्व के पावन ८ दिनों में करने लायक ११ विशेष कर्तव्यों का पालन करने जिनमें १ ..तपश्चर्या
२ सुपात्र दान , ३ दया ,४ दान ,५ अमारी प्रवर्तन (अहिंसा पालन )६ परमात्म पूजन ,७ पौषध,
८ सामायिक ,९ प्रतिक्रमण ,१० चेत्य परिपाटी ,११प्रभु भक्ति आदि प्रमुख विषयों पर विस्तारपूर्वक व्याख्या
कर उपदेशित किया जाता है
- पौषध व्रत में रहकर साधू मार्ग ,उसकी दिनचर्या बिताने के विशेष कर्तव्य के साथ
- तीर्थंकर परमात्मा के जीवन चरित्र के साथ च्यवन ,जन्म दीक्षा ,केवलज्ञान एवं निर्वाण कल्याणक
(पञ्च कल्याणक )
- साधु समाचारी का विस्तृत वर्णन बताया जाता है
- ग्रंर्थों ,शास्त्र श्रवण और तपोमय क्रियाओं के माध्यम से मन की चंचलता और क्रोध को कम करने
का प्रयास किया जाता है
महापर्व का सबसे प्रमुख दिवस क्षमापना दिवस है जिसे संवत्सरी भी कहते है संवत्सरी अर्थात वर्ष भर में एक बार इस दिन श्रावक वर्ष भर में मन वचन काया से किये गए पापों की ,जाने अनजाने हुई ग़लतियों की क्षमा मागतें है एवं दूसरों को क्षमा करते भी है जीवन में क्षमाशीलता का गुण आ जाने पर मनुष्य दु:ख देनें वालों से भी प्रेम कर स्वयं को सुखद महसूस करता है ध्यान रहे ; अहिंसा ,सत्य ,अस्तेय,ब्रह्मचर्य,असंग्रह या अपरिग्रह का पालन करना मुख्य है
इस प्रकार पर्वाधिराज पर्युषण महापर्व का सही आराधक आत्मिक गुणों को विकसित करते हुए आत्मोत्थान के उच्च शिखर पर प्रतिष्ठित हुए बिना नहीं रहता .प्रभु हमें भी ऐसे पर्व को सरल ह्रदय से आत्मसात कर क्रोध को शांत करने के प्रयास करते - करते वीर और क्षमाशील बनने की शक्ति प्रदान करें ....
(इस पोस्ट पर लिया गया चित्र पालीताणा तीर्थ क्षेत्र का है)
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पर्यूषण पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंji bahut hi sundar paribhash he paryushan ki
जवाब देंहटाएंBAHUT DEEP THOUGHT HAI.........
जवाब देंहटाएंशास्त्रोक्त विचार जो कि सारांशतः जैन धर्म के मूल सिद्धांतो का प्रतिपालन करने का मार्गदर्शन दे रहे हे ! परंतू शब्द जयंती के माध्यम से आदरणीय पिताजी को सही मायने में श्रन्धांजलि तभी सार्थक होगी जब हम तिर्थंकरो के बताये मार्ग पर चलने का प्रयास करे! आमोद
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