बनी रहे बुज़ुर्गों के प्रति श्रध्दा और अनुराग;उनकी दुआओं से ही जागते हैं हमारे भाग.

शनिवार, 16 जुलाई 2011

उनकी याद;जिनसे है हमारी ज़िन्दगी आबाद !

इसी बरस पूज्य पिताश्री जियालालजी जैन हमसे बिछुड़े.वे देह से तो हमसे विलग हुए लेकिन उनकी परवरिश,मशवरे,संस्कार हर पल हमारे विचार और कर्म को आलोकित करते रहते हैं.उनके जाने के बाद

जब सारी चीज़ों पर नज़र गई तो मिले कुछ ऐसे अनमोल दस्तावेज़ जिन्हें देखकर लगा कि इसे परिजनों और मित्रों के साथ साझा करना चाहिये. बस इसी इरादे से शब्द-जयंति की शुरूआत कर रही हूँ. मैं काम के लिये कितनी उपयुक्त हूँ ये तो नहीं जानती लेकिन मानती हूँ कि पापा के लिये लेख,कविताएँ और दीगर कई सामग्रियाँ मुझे सहेजनी चाहिये.ये ब्लॉग मेरा उस पिता के लिये न केवल एक आदर भाव है बल्कि एक ज़िम्मेदारी भी.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें